Thursday, April 17, 2008

हिंसा

अगर हम अहिंसा कि बात करते हैं तो सब से पहले जो नाम हमारे जेहन मे आता है वह है भगवान महावीर । वे अहिंसा के अवतार ही नही थे वे स्वयं अहिंसा थे । अहिंसा और महावीर मे सदृश्य था। महावीर से प्रथक अहिंसा का अर्थ ही खो गया है । पर वास्तव मे अहिंसा या हिंसा क्या है । क्या किसी को मारना या कष्ट देना ही हिंसा है
किसी को मारना या कष्ट देना मात्र ही हिंसा नही हिंसा के असंख्य रूप हमारे जीवन मे इस प्रकार घुल गए है कि उन्हें पहचानना भी कठिन हो गया है । हिंसा के सुक्षम रूपों का वर्णन यहाँ दिया गया है।

किसी जीव को सताना हिंसा है ।
झूठ बोलना कटु बोलना हिंसा है ।
दंभ करना धोखा देना हिंसा है ।
किसी कि चुगली करना हिंसा है ।

किसी का बुरा चाहना हिंसा है ।
दुःख होने पर घबराना हिंसा है ।
सुख मे फूल कर अकड़ना हिंसा है ।
किसी कि निंदा और बुराई करना हिंसा है ।
गाली देना हिंसा है
अपनी बडाई हाकना हिंसा है ।
किसी पर कलंक लगाना हिंसा है
झिद्दकना , भद्दा मजाक करना हिंसा है ।

किसी पर अन्याय होते देख चुप रहना हिंसा है ।
शक्ति होते हुए भी अन्याय को न रोकना हिंसा है ।
आलस्य और प्रमाद मे निष्क्रिय पड़े रहना हिंसा है ।
अवसर आने पर भी सत्कर्म से जी चुराना हिंसा है ।

बिना बाटेअकेले खाना हिंसा है ।
इन्द्रियों का गुलाम रहना हिंसा है ।
देबे हुए कलह को उखाड़ना हिंसा है ।
किसी कि गुप्त बात को प्रकट करना हिंसा है ।

किसी को नीच -अछूत समझना हिंसा है ।
शक्ति होते हुए भी सेवा न करना हिंसा है ।
बडों कि विनय भक्ति न करना हिंसा है ।
छोटों से स्नेह , सद्भाव न रखना हिंसा है ।

ठीक समय पर अपना फ़र्ज़ अदा न करना हिंसा है ।
सच्ची बात को किसी बुरे संकल्प से छिपाना हिंसा है ।


Wednesday, April 16, 2008

गीता नवनीत

क्रोध से मूढ़ता पैदा होती है । मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है ।
स्मृति भ्रांत होने से बुद्धी का नाश होता है और बुद्धि - नाश
से स्वयम मानव ही नष्ट हो जाता है ।
(भगवद गीता २/६३ )

जिसे समत्व नही उसे विवेक नही , भक्ति नही और
जिसे भक्ति नही उसे शान्ति नही औरजिसे शान्ति नही
उसे सुख कहाँ मिल सकता है ?
(भगवद गीता २/६६)

जो पैदा हुआ है उसकी मृत्यु अनिवार्य है और जो मर गया है,
उसका जन्म अनिवार्य । अतः जो बात टाली नही जा सकती , उसके
लिए तुम्हें शोक नही करना चाहिए ।
(भगवद गीता २/२७ )

हे पार्थ ! जो व्यक्ति कल्याणकारी कार्यों मे लगा रहता है उसका न
तो इस जीवन मे विनाश होता है , न परलोक मे , क्योंकि भले
काम करने वाले की कभी दुर्दशा नही होती ।
( भगवद गीता ६/४० )

जिसने मन को वश मे कर लिया है , उसके लिए मन सर्वश्रेष्ठ
बन्धु है और जिसने मन को वश मे नही किया है ,
उसका मन ही परम शत्रु है ।
(भगवद गीता ६/६ )

जिसका मन दुखों मे विचलित नही होता और जिसे सुखों मे
अधीरतापूर्ण लालसा नही रहती ,जो राग , भय और क्रोध से मुक्त
हो गया है , स्थित -बुधि -मुनि कहलाता है ।
(भगवद गीता २/५६ )

Friday, April 11, 2008

एक , दो , तीन

एक समृद्ध और शक्तिशाली राजा था। उसे विश्वास था कि दुनिया मे उससे अधिक शक्तिशाली कोई नही है । पर इस बारे मे उसने किसीसे बात नही की । एकदिन उसे यह जानने कि उत्सुकता हुई कि देखें , उसके मन कि बात दूसरे लोग भी जान सकते है या नही । यह सोच कर उसने अपने तमाम दरबारियों और करमचारियों को इकठ्ठा किया और उनसे यह बुझने को कहा कि उसके मन मे क्या है । बहुतों ने माथा लड़ाया , पर कोई भी उसे संतुष्ट नही कर सका।
तब राजा ने दीवान को आदेश दिया कि वह एक महीने मे ऐसे मेधावान आदमी को दूंड ले आए जो उसके विचार का अनुमान लगा सके । दीवान ने हर जगह तलाश किया, पर व्यर्थ । महीना ख़त्म होने को था, पर कोई नतीजा नही निकला । वह बिल्कुल निराश हो गया । पर उसकी एक्लोती बेटी ने उसे यह कह कर चिंतामुक्त कर दिया कि वह उसे सही आदमी दूंद देगी । दीवान ने कहा,"ठीक है, देखूं , तुम क्या कर सकती हो! "
नियत दिन दीवान की बेटी ने एक गड़रिया को पिता के सामने खड़ा कर दिया । वह उनके यहाँ नौकर था। दीवान भोचका रह गया । पर बेटी ने जोर दे कर कहा कि यह bhondu गड़रिया उनकी सारी परेशानियाँ दूर कर देगा । और कोई चारा न देख कर दीवान गड़रिया को दरबार मे ले गया ।
राजा दरबार मे दीवान का इंतजार कर रहा था। दीवान ने गड़रिया को राजा के सामने पेश किया । गड़रिया ने आँखे उठा कर राजाकी और देखा । राजा ने अपनी एक ऊँगली उपर उठाई । इसके जवाब मे गड़रिया ने दो उंगली उप्पर उठाई । पर राजा ने अपनी तीन उंगलियाँ उप्पर उठाई । यह देख कर गड़रिया ने सर हिलाया और भागने कि चेष्टा कि। राजा जोर से हंसा । ऐसा चतुर आदमी लाने के लिए उसने दीवान कि पीठ ठोकी और उसे पुरुस्कारों से लाद दिया ।
दीवान चित्र्वत देखता रह गया । यह गोरखधंधा उसके पल्ले नही पड़ा । उसने राजा से खुलासा करने का आग्रह किया।
राजन कहा, " एक ऊँगली उठा कर मैंने उससे पूछा कि क्या मे सबसे शक्तिशाली हूँ । दो उंगलियाँ उठा कर उसने मुझे याद दिलाया कि भगवन भी तो है जो मेरे बराबर शक्तिशाली है । तब मैंने पूछा कि क्या कोई तीसरा भी है । पर उसने सर हिला कर साफ मना कर दिया । इस आदमी ने सचमुच मेरे मन कि बात ताड़ ली । में सोचता था कि में ही अकेला शक्तिशाली हूँ । इसने मुझे भगवान के अस्तित्व कि याद दिलाई , परतीसरे कि संभावना को नही माना । "
दरबार बर्खास्त हुआ । सब अपने अपने रस्ते लगे । रात को दीवान ने मूढ़ गदरिया से पूछा कि उसने राजा के इशारों का क्या मतलब निकाला और उसने राजा को क्या जवाब दिया। गद्दरीया ने कहा , " मालिक , मेरे पास सिर्फ़ तीन भेड़े हें । जब आप मुझे महाराज के पास ले गए तो उन्होंने मुझे एक ऊँगली दिखाए । यानि वे मेरी एक भेद लेना चाहते थे । वे इतने बड़े राजा ठहरे ! सो मैंने उन्हें दो भेदें देने चाही । इस पर उन्होंने तीन उँगलियाँ दिखाई यानि वे मेरी तीनो भेदें लेना चाहते थे । मुझे लगा यह ज्यादती है । सो मैंने वहां से भाग जाना चाहा । "

Thursday, April 10, 2008

कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती

लहरों से डर कर नौका पर नही होती,

कोशिश करने वालों हार नही होती ,

नन्ही चीटी जब दाना लेकर चद्ती है,

चद्ती दीवारों पर सो बार फिसलती है,

मन का विश्वास रगों मे साहस भरता है,

चड़ना गिरना गिरकर चड़ना ना अखरता है ,

आख़िर उसकी मेहनत बेकार नही होती,

कोशिश करने ....................................... ॥

डुबकियां सिंधु मे गोताखोर लगाता है ,

जाजा कर खली हाथ लौट आता है,

मिलते ही न सहज मोती गहरे पानी मे ,

बढता दूना उत्साह इसी हैरानी में ,

मुट्ठी उसकी खाली हर बार नही होती ,

कोशिश करने वालों ............................... ॥

असफलता इक चुनोती है स्वीकार करो,

क्या कमी रह गई देखो और सुधार करो ,

जब तक न सफल हो नीद चैन को त्यागो तुम,

संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम,

कुछ किए बिना ही जय जय कर नही होती,

कोशिश करने ............................................... ॥

नाराज़गी दूर हो गई

एक आदमी अखरोट के पेड़ के नीचे बैठा था । पेड़ के पास कदू की बेल थी । बेल के पास एक बहुत बड़े कदू पर उसकी नज़र पड़ी ।
उस आदमी ने नाराज़गी से कहा ," भगवान तुम्हारी मुर्खता का भी जवाब नही ! इतने बड़े पेड़ के इतना सा फल और इस जरा सी बेल के इतना बड़ा फल! अगर इस विशाल पेड़ पर कदू लगते और इस बेल पर अखरोट टू मे तुम्हारी बुद्धि को मान जाता।"
उसका यह कहना हुआ और एक अखरोट टाप से उसके सर पर गिरा । वह चौंक पड़ा । बोला ,"प्रभु तुम ठीक हो । अगर इतने ऊंचाई से कदू मेरे सिर पर गिरता तौ मे मर गया होता । तुम्हारी बुद्धि और दया अपार है ."

अहिंसा

किसी दुरत साँप ने इक मार्ग के पास डेरा डाला और हर आने जाने वाले को काटने लगा ।एक बार एक साधू उधर से निकला । साधू को देखते ही साँप उसे डसने के लिए दोडा। साधू ने उसे प्यार से देखा और शान्ति से कहा,"तुम मुझे काटना चाहते हो , है न ? आओ , अपनी इछा पूरी करो। "
साधू की अप्रत्याशित प्रतिक्रिया और सज्जनता से साँप अभिभूत हो गया। साधू ने कहा,"मित्र , मुझे वचन दो कि आज के बाद तुम किसीको नही काटोगे। "साँप ने उसे प्रनाम किया और वचन दिया कि अब वहकिसीको नही कटेगा। साधू आगे बाद गया । साँप सीधा सादा अहिंसक जीवन बिताने लगा।
कुछ ही दिनों मे सब जान गए कि अब इस साँप से डरने कि कोई जरूरत नही है। बचे उसके साथ बहुत क्रूर व्यवहार करने लगे। वे उसे पत्थर मारते और पूँछ पकड़ कर घसीटते । तमाम यातनाए भुगत कर भी साँप ने साधू को दिया अपना वचन नही तोडा ।
कुछ समय बाद साधू अपने नए शिष्य से मिलने आया। उसका घ्याल और सूजा हुआ शरीर देखकर गुरु भीतर से हिल गया । उसने साँप से पूछा कि उसकी यह हालत कैसे हुई । साँप ने कमजोर आवाज मे कहा,"गुरुदेव,आपने मुझे काटने से मन किया था.पर लोग बहुत क्रूर है ।"
साधू ने कहा ,"मैंने तुम्हें काटने के लिए मन किया था फुफ्कारने के लिए नही."