किसी दुरत साँप ने इक मार्ग के पास डेरा डाला और हर आने जाने वाले को काटने लगा ।एक बार एक साधू उधर से निकला । साधू को देखते ही साँप उसे डसने के लिए दोडा। साधू ने उसे प्यार से देखा और शान्ति से कहा,"तुम मुझे काटना चाहते हो , है न ? आओ , अपनी इछा पूरी करो। "
साधू की अप्रत्याशित प्रतिक्रिया और सज्जनता से साँप अभिभूत हो गया। साधू ने कहा,"मित्र , मुझे वचन दो कि आज के बाद तुम किसीको नही काटोगे। "साँप ने उसे प्रनाम किया और वचन दिया कि अब वहकिसीको नही कटेगा। साधू आगे बाद गया । साँप सीधा सादा अहिंसक जीवन बिताने लगा।
कुछ ही दिनों मे सब जान गए कि अब इस साँप से डरने कि कोई जरूरत नही है। बचे उसके साथ बहुत क्रूर व्यवहार करने लगे। वे उसे पत्थर मारते और पूँछ पकड़ कर घसीटते । तमाम यातनाए भुगत कर भी साँप ने साधू को दिया अपना वचन नही तोडा ।
कुछ समय बाद साधू अपने नए शिष्य से मिलने आया। उसका घ्याल और सूजा हुआ शरीर देखकर गुरु भीतर से हिल गया । उसने साँप से पूछा कि उसकी यह हालत कैसे हुई । साँप ने कमजोर आवाज मे कहा,"गुरुदेव,आपने मुझे काटने से मन किया था.पर लोग बहुत क्रूर है ।"
साधू ने कहा ,"मैंने तुम्हें काटने के लिए मन किया था फुफ्कारने के लिए नही."
Thursday, April 10, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment