Wednesday, April 16, 2008

गीता नवनीत

क्रोध से मूढ़ता पैदा होती है । मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है ।
स्मृति भ्रांत होने से बुद्धी का नाश होता है और बुद्धि - नाश
से स्वयम मानव ही नष्ट हो जाता है ।
(भगवद गीता २/६३ )

जिसे समत्व नही उसे विवेक नही , भक्ति नही और
जिसे भक्ति नही उसे शान्ति नही औरजिसे शान्ति नही
उसे सुख कहाँ मिल सकता है ?
(भगवद गीता २/६६)

जो पैदा हुआ है उसकी मृत्यु अनिवार्य है और जो मर गया है,
उसका जन्म अनिवार्य । अतः जो बात टाली नही जा सकती , उसके
लिए तुम्हें शोक नही करना चाहिए ।
(भगवद गीता २/२७ )

हे पार्थ ! जो व्यक्ति कल्याणकारी कार्यों मे लगा रहता है उसका न
तो इस जीवन मे विनाश होता है , न परलोक मे , क्योंकि भले
काम करने वाले की कभी दुर्दशा नही होती ।
( भगवद गीता ६/४० )

जिसने मन को वश मे कर लिया है , उसके लिए मन सर्वश्रेष्ठ
बन्धु है और जिसने मन को वश मे नही किया है ,
उसका मन ही परम शत्रु है ।
(भगवद गीता ६/६ )

जिसका मन दुखों मे विचलित नही होता और जिसे सुखों मे
अधीरतापूर्ण लालसा नही रहती ,जो राग , भय और क्रोध से मुक्त
हो गया है , स्थित -बुधि -मुनि कहलाता है ।
(भगवद गीता २/५६ )

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